सबसे ख़ूबसूरत कविता?💕
अक्सर पूछा जाता है मुझसे, मेरी पसंदीदा कविता के बारे में? कहा जाता है उसे सनाने को, कैसे समझाऊं , शब्द महसूस किए जाते हैं, ख़ूबसूरत कविता को दरकार नहीं लफ़्ज़ों की वो मौजूद है हर जगह, सुनना पड़ता है उसे, बंद आंखों से, ना उसे कागज-कलम का कोई ठोर चाहिए, वो तो ऐसे उतर जाती ज़हन में जैसे उतरी हो ख़ुशबू गुलों में या की कोई माटी पे हुई हो बरसात पहली मर्तबा, या जमी हो पत्तों पर भोर की ओस, या की जैसे कोई चलता घांस पर नंगे पांव, या कोई चिड़िया सिखाती उड़ना अपने चूज़े को, जैसे कोई पिता देखता अपने बच्चे को खड़ा होता अपने पैरों, या की कोई मां भेजती बालक को स्कूल बस्ता टांगे कांधे पर, या की पेड़ों से मन्नत मांगती पत्नी अपने पति की आयु की! या दोनों साथ में रखते हों व्रत करवा चौथ का, याद हो तुम्हें कॉलेज का पहला दिन, जब उससे मिले तुम, या जब भी उसके ख़यालों में खोते बिस्तर पर लेटे, देखना कहीं मिलेगी वहीं कविता,तकिए के सिरे या मिलेगी उस स्टडी टेबल पर जहां आसमान छूने का ख्वाब देखते, लगी थी झपकी, याकी कोई पुजारी बजाता हो शंख सूर्योदय का, देखलो लौटते पंछ...