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स्मृतिशेष!

मैं तुम्हे अग्नि की लपटों में जला तो दूंगा, मैं तुम्हे वायु के प्रवाह से उड़ा तो दूंगा, मैं तुम्हे भूमि में मिला तो दूंगा, गंगा के प्रचण्ड प्रवाह में बहा तो दूंगा, तुम हो जाओ शून्य नभ-से चाहे, पर हे पञ्च प्राण विशेष! तुम रहोगे मुझमें कहीं शेष, स्मृतिशेष! तुम अपने दिए संस्कारों में, वाक्यों में ,विचारों में, तुम अपनी ही पुण्याई में, तुम पीढ़ा की दवाई में, तुम कुल के उत्थान में, अपने मातृ वृत बलिदान में, सदा रहोगे शेष, हे स्मृतिशेष! शून्य से जिसने शिखर को छूना सिखाया, हमको उंगली पकड़ जिसने चलना सिखाया, हमारा संसार जिसने बसाया, जैसे परमात्मा ने धरा मानव वेश! तुम ना होकर भी है अशेष, सदा ही रहोगे शेष, स्मृतिशेष! ~Dedicated to my beloved grandmaa❤