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Indian mythology: ऋषि

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ऋषि सनातन धर्म की ग्रंथ परंपरा आदिकाल से दो सिद्धांतों पर चल रही है: श्रुति तथा स्मृति। श्रुति मतलब सुनना,जिस परंपरा में ग्रंथो को सुनकर आगे बढ़ाया गया हो जैसे गुरु शिष्य द्वारा(उदा.पुराण उपनिषद)और स्मृति मतलब स्वयं के द्वारा अर्जित ज्ञान से स्मरण से लिखे ग्रंथ- ध्यान आदि माध्यम से(उदा. मनु स्मृति ,याज्ञवल्क्य स्मृति)आदि। दोनों परंपराओं ने हमारी शास्त्र संपदा को परिष्कृत किया। भारतीय  श्रुति परंपरा के शास्त्रों को लिपिबद्ध करने वाले व्यक्ति विशेष को कहा गया "ऋषि"।सामान्यत: वेदों की ऋचाओं का साक्षात्कार करने वाले लोग ऋषि कहे जाते थे।  ऋषि शब्द का वर्बल मीनिंग होता है दृष्टा या देखने वाला।  ऐसा इसलिए कहा जाता है क्यूंकि वेद जैसे ग्रंथ(जिन्हें हम आदि ग्रंथ कहते हैं)को लिपिबद्ध करने वाले यही व्यक्ति थे। जब बात लिखने की थी तो दृष्टा क्यों कहा?तो जवाब यह है कि आदि ग्रंथो का निर्माण कभी नहीं हुआ अर्थात वे सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में थे,बस देर थी तो उन पर से पर्दा हटाने की।  तो ऋषियों ने अपने ज्ञान,तप और योग बल के द्वारा ग्रंथ के मंत्रों, वेद की ऋचाओं आदि को आत्मिक स्तर पर अनुभ