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Showing posts from July, 2019

सबसे ख़ूबसूरत कविता?💕

अक्सर पूछा जाता है मुझसे, मेरी पसंदीदा कविता के बारे में? कहा जाता है उसे सनाने को, कैसे समझाऊं , शब्द महसूस किए जाते हैं, ख़ूबसूरत कविता को दरकार नहीं लफ़्ज़ों की वो मौजूद है हर जगह, सुनना पड़ता है उसे, बंद आंखों से, ना उसे कागज-कलम का कोई ठोर चाहिए, वो तो ऐसे उतर जाती ज़हन में जैसे उतरी हो ख़ुशबू गुलों में या की कोई माटी पे हुई हो बरसात पहली मर्तबा, या जमी हो पत्तों पर भोर की ओस, या की जैसे कोई चलता घांस पर नंगे पांव, या कोई चिड़िया सिखाती उड़ना अपने चूज़े को, जैसे कोई पिता देखता अपने बच्चे को खड़ा होता अपने पैरों, या की कोई मां भेजती बालक को स्कूल बस्ता टांगे कांधे पर, या की पेड़ों से मन्नत मांगती पत्नी अपने पति की आयु की! या दोनों साथ में रखते हों व्रत करवा चौथ का, याद हो तुम्हें कॉलेज का पहला दिन, जब उससे मिले तुम, या जब भी उसके ख़यालों में खोते बिस्तर पर लेटे, देखना कहीं मिलेगी वहीं कविता,तकिए के सिरे या मिलेगी उस स्टडी टेबल पर जहां आसमान छूने का ख्वाब देखते, लगी थी झपकी, याकी कोई पुजारी बजाता हो शंख सूर्योदय का, देखलो लौटते पंछ

प्रेम की परिभाषा?❤

हां,मैंने सुना है प्रेम में व्याकुलता, अश्रुधारा नहीं रुकती! स्मृतिगंधित मन में प्रियतम की यादें नहीं थकती हृदय मौन रहकर भी शोर करता है! चाहे जहां देखलो मित का ही रूप उभरता है! पर ऐसा तो कुछ हुआ नहीं! कुछ एक बातें है जो अनकही है ओर मेरी समझ से परे है यह विलक्षण अनहुआ सा है राही!बताओ तो,  क्या यही प्रेम है? घनघोर गर्जना भी शांत सी प्रतीत होती है विचारों की नौका मन ही मन डूबती रहती है सांसे हृदय को तीव्र स्पंदन से भर देती है आंखो का हिलना-डुलना ठहर सा जाता है विराट अम्बर भी श्यामल हो जाता है चन्द्रमा तारे सबकी आभा फीकी पड़ जाती है बस किसी के प्रतीक्षा में राहों की और टकटकी लगजाती है है राही!बताओ तो, क्या यही प्रेम है? पर मैंने तो सुना है प्रेम श्रृंगार है! वसंत - कारक है! पुष्पों को परागकण से पल्लवित करने वाला, लताओं कोपलों के फूटने का, पक्षियों के मधुर कलकल का, नदियों में तरंगों का, आकाश में पतंगों का, ततलियों के रंगों का, रूप ही प्रेम है! है राही!बताओ तो क्या यही प्रेम है?