प्रेम की परिभाषा?❤

हां,मैंने सुना है
प्रेम में व्याकुलता,
अश्रुधारा नहीं रुकती!
स्मृतिगंधित मन में
प्रियतम की यादें नहीं थकती
हृदय मौन रहकर भी
शोर करता है!
चाहे जहां देखलो
मित का ही
रूप उभरता है!
पर ऐसा तो कुछ हुआ नहीं!
कुछ एक बातें है
जो अनकही है
ओर मेरी समझ से परे है
यह विलक्षण अनहुआ सा
है राही!बताओ तो,
 क्या यही प्रेम है?

घनघोर गर्जना भी
शांत सी प्रतीत होती है
विचारों की नौका
मन ही मन डूबती रहती है
सांसे हृदय को
तीव्र स्पंदन से भर देती है
आंखो का हिलना-डुलना
ठहर सा जाता है
विराट अम्बर भी
श्यामल हो जाता है
चन्द्रमा तारे सबकी आभा
फीकी पड़ जाती है
बस किसी के प्रतीक्षा में
राहों की और टकटकी लगजाती है
है राही!बताओ तो,
क्या यही प्रेम है?

पर मैंने तो सुना है
प्रेम श्रृंगार है!
वसंत - कारक है!
पुष्पों को परागकण से
पल्लवित करने वाला,
लताओं कोपलों के फूटने का,
पक्षियों के मधुर कलकल का,
नदियों में तरंगों का,
आकाश में पतंगों का,
ततलियों के रंगों का,
रूप ही प्रेम है!
है राही!बताओ तो
क्या यही प्रेम है? 

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