नारी!

नारी!
ऋग् की ऋचाओं ने जिसे गाया वो तुम!
यजुः के कर्मकाण्ड ने जिसे ध्याया वो तुम!
वेदों ने तुमको "अखिलम्-जगत" कहा है!
तुमने पृथ्वी सम नारी! भार सहा है!
अरण्यकों-उपनिषदों में "प्रकृति" नारी है
ईश्वर की उत्कृष्ट कृति नारी है!1. .


तुमको मानव ने "मां" की संज्ञा दी ,
साक्षात प्रेम की,करुणा की संज्ञा दी,
आदि काल से तुम सर्व शक्ति-शाली हो,
तुम त्रिदेव से नारी! बलशाली हो!
तुम भूल गई सारी वीर गाथाएं !
तुम भूली अपनी शक्ति और सीमाएं,
तुम सप्तशती हो,तुम्हीं मातृका सारी!
नारी नौ-दुर्गा हो,तुम्हीं योगिनियां सारी।2


त्रिलोक में जब था प्रकोप,
भयंकर महिष का चंड और मुंडों का,
रक्तबीज का दानव शुंभ-निशुंभों का
आए थे सब देव कर जोड़े शैलांचल में,
आए थे इन्द्र-शिव-विष्णु-वरुणादी हिमाचल में,
सबको तुमने तब नारी! भय से तारा था।
तुमने दैत्यों को मृत्यु-घाट उतारा था!3


तुम हिम सी शीतल-सौम्य-शांत रहती थी!
तुम देव-दैत्य में भेद नहीं करती थी!
तुम प्रेम-ममता-करुणा की मुर्तिवती थी!
तुमको दानव ने नोंचा, ललकारा था!
रणभूमि में हे चंडिका!तुम्हे पुकारा था!
तुमने खेली तब रुधिर संग होली थी!
तुम शांत ललिता से भद्रकाली होली थी!4


तुमने रण लड़ा बड़ी वीरता ,से साहस से!
दानव भाग पड़े हुंकार से ,एक आहट से
नारी! तुम फिर क्यों अब डरती हो, दबती हो?
तुम स्वामिनी होकर दासी क्यों बनती हो?
जो आए आढ़े मार्ग में ,उनको देखो तुम!
सारे अवरूद्धौं को उखाड़ फेंको तुम!5.


अब कली-काल में फिर दानव आया है।
अब महिष दैत्य का मानव रूप आया है
अब चंड-शुंभ सब मानव में बसते हैं
यहां पग-पग पर शोणितबीज बसते हैं।
अब समय आया है नव रूप धरने का!
लक्ष्मी-शारदा छोड़ काली बनने का!6


सारे राजा यहां सोमपान में व्यस्त हैं!
यहां इन्द्र सब उर्वशियों के नृत्य-गान में व्यस्त हैं!
यहां मानवता मरणासन्न पड़ी है!
सबको धर्म की पड़ी ,लाज की किसे पड़ी है?
अब विद्रोह स्वयं को करना होगा!
बहन-बेटियों को रण में उतरना होगा!
अब कलम-कड़छी को छोड़ो शूल धरो तुम!
अब दीप बुझा के ज्वाला रूप धरो तुम!
अब दीप बुझा के ज्वाला रूप धरो तुम! 7

~पलकेश✍🏻

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