मैं सदैव चलता रहूंगा!

मैं सदैव चलता रहूंगा!
चाहे दिनमणि विश्रांत हो ले,
चाहे यह धरणी क्लांत हो ले!
चाहे हिलजाए गिरिराज हिमशिख;
या डगमग-डगमग भू-मंडल डोले!
मैं प्रति बाधा दलता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा! .


लगे दश-दिक् से अग्नि के थपेड़े,
या स्वयं निजानन काल खोले,
चाहे हों मार्ग में शत-कोटि बाधा,
या मृत्यु से दो-दो हाथ होले!
हो साथ कोई पंथी कंटक-पथ में
वरन् मैं एक स्वयं बढ़ता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!


 लिखा है नियति ने क्या?मुझे अज्ञात है वह!
भाग्य-पट पर लिखूं जो,आज मेरे हाथ है वह!
कर्म-कृपाण ही जीवन-रण की स्त्रुवा कहाती है,
जीवन के इस राजसूय में मैं स्वयं को
समिध-तुल्य बलता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!


 रण हे हार-जीत सम, मरने-मारने में भय-शोक न हो
लड़कर यदि में हार लूं,तो मुझे शय-क्षोभ न हो!
मुझे कर्तव्य-पथ पर किंचिन्मात्र फल का लोभ न हो!
अंतिम श्वास तक "चरैवेति" मंत्र का जपगान मैं करता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!


 विजय-श्री को ब्याहने मैं चला हूं!
मुकुट जय का निज शीश पर धारने मैं चला हूं!
हो क्या?प्रारब्ध में जो हो पराजय?
मैं तो केवल संकल्प संग्राम लड़ने का करूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!


 हो बली, तो विजय की अतिशयोक्ति क्या?
अकर्मण्य को सफलता की शुभकामना क्या?
अनिच्छा में रण की,हार की संवेदना क्या?
लड़ने में ही तो कुछ पाने की संभावना है!
चतुर्दश-रत्न पाने के लिए जलधी सदा मलता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!
मैं सदैव चलता रहूंगा!

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