कुकुरमुत्ता memes 'डिसाईफर' करने के लिए संदर्भ लेख!😂

बकौल कुछ समीक्षक ‘कुकुरमुत्ता’ कविता नहीं,बल्कि- "सांप झाड़ने का मंत्र है!"

क्या कारण है कि निराला जैसे महान कवि की रचना को ऐसा कहा गया?इसे पहली बार पढ़ने पर पर्याप्त संभावना रहती है कि सामान्य व्यक्ति को समझ न आए!दरअसल यह कविता प्रयोगधर्मिता को अगले स्तर पर ले जाती है।

दो हिस्सों में लिखी यह कविता घूमती है नव्वाब के बगीचे के इर्द गिर्द।इसका मुख्य पात्र है "कुकुरमुत्ता",जो शुरुआत में प्रगतिवादी चेतना से प्रभावित मालूम पड़ता है (प्रगतिवाद मार्क्सवाद का साहित्यिक संस्करण है)।एक समय तक समीक्षक भी इस बात को मानकर चलते रहे कि कुकुरमुत्ता पूंजीवाद पर तंज है।पर ऐसा नहीं है,उन्हें इसका मर्म जानने में दूसरा भाग समझने जितनी देर लगी।

शुरुआती पंक्तियों में बाग़ में लगे पौधों-फूलों का लंबा परिचय आता है।इसी बीच बाग़ के कीचड़ में खिला कुकुरमुत्ता ‘बुत्ता’ देकर एंट्री लेता है। सर्वहारा वर्ग का स्वघोषित प्रतिनिधि कुकुरमुत्ता ‘कैपिटलिस्ट गुलाब’ को कोंसना शुरू करता है-

        अबे!सुन बे गुलाब,
        भूल मत पाई जो खुश्बू रंगो-आब,
        खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
        डाल पर इतराता है
        कैपिटलिस्ट!

और कोंसते हुए इस स्तर पर पंहुचा जाता है कि आक्रामक तेवर के साथ गालीनुमा भाषा मुंह पर आने लगती है।(कविता के विवादास्पद होने एक कारण इसकी भाषा भी है!)

कविता में टर्निंग पॉइंट भी कुकुरमुत्ता के इस गुस्सैल स्तर पर पहुंचने के साथ दिखाई देता है।यहां आकर विचारधारा की जड़ यांत्रिकताओं से सामना होता है।कुकुरमुत्ता मार्क्सवाद की शब्दावली जानता है।वह गुलाब को इसलिए गाली देता है क्योंकि वह सुंदर है,आभिजात्य का प्रतीक है।उसे अपने अंदर ब्रह्म,सारे जहां में अपनी परछाई नजर आती है,तो पति पत्नी के झगड़े में वर्ग संघर्ष दिखाई देता है।इसीलिए डॉ रामविलास शर्मा ने कुकुरमुत्ता को प्रोलिटिरियट वर्ग की जगह 'लुम्पेन प्रोलिटिरियट' वर्ग का प्रतिनिधि कहना ठीक समझा।

सभी तरह के ऊल-जुलूल विचार प्रक्षेपित करने के बाद कुकुरमुत्ता भी अंत में ‘शहीद’ हो जाता है।बाग़ के मालिक नव्वाब की बेटी–जो शुरुआती अनुमानों के हिसाब से पूंजीवाद का प्रतीक हैं–अपनी सहेली की साथ मिलकर कुकुरमुत्ते का 'कलिया-कबाब' बनाकर खाती हैं।इसी के साथ सारी प्रोग्रेसिव चेतना ध्वस्त हो जाती है, और समझ आता है की ये तो प्रैंक टाइप हो गया!निराला कुकुरमुत्ता को जिस अंतिम बिंदु पर ले जाते हैं वही कविता का मर्म भेदी बिंदु बनता है।

कुल मिला कर कुकुरमुत्ता किसी भी विचारधारा के छिद्र उजागर करती दिखाई देती है।साफ शब्दों में कहें तो यह नकार की कविता है।यहां यदि गुलाब की स्थितिजनित सुंदरता पर तंज है,तो "सुंदरता से कीचड़ भला" वाले कुतर्क पर भी चोंट है।
इसे पूर्वप्रतिष्ठित मान्यताओं और आभिजात्य के विरोध की कविता कहा जाता है।इलियट के अंधानुकरण से लेकर गुस्सैल प्रोग्रेसिव पर कलम खींचते हुए निराला गेंहू और गुलाब में संबंध स्थापित करना चाहते हैं।

यांत्रिकताओं और वैचारिक जड़ताओं से जूझ रहे व्यक्ति को आइना दिखाने हर विचार–प्रगतिवाद (जिससे स्वयं निराला एक हद तक प्रभावित रहे) समेत–की कमजोरियों को ठीक ढंग से बयान करती कविता दरअसल 'वैचारिक जड़ता' झाड़ने का मंत्र लगती है!

तो अब memes के संदर्भ तो समझ ही गए होंगे?😂

~पलकेश 

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